गीता में यह भी स्पष्ट किया गया है कि कर्म का सर्वथा त्याग करना असंभव है। यदि हम शरीर से कोई कर्म न भी कर रहे हों, तब भी हम मन और बुद्धि से क्रियाशील रहते हैं। जब तक हम इन गुणों के प्रभाव में रहते हैं तब तक कर्म करने के लिए हम विवश होते हैं। इसलिए कर्म का सर्वथा त्याग करना असंभव है, क्योंकि यह प्रकृति के नियम के विरुद्ध होगा。
कर्म के प्रकार:
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कर्म के तीन प्रकार बताए हैं: कर्म, अकर्म और विकर्म। कर्म वह है जो हमें अपने कर्तव्य के रूप में करना चाहिए, अकर्म वह है जो हमें नहीं करना चाहिए, और विकर्म वह है जो हमें नहीं करना चाहिए लेकिन फिर भी करते हैं।
कर्मफल की प्राप्ति:
गीता में यह भी बताया गया है कि कर्मों का फल तीन तरह से मिलता है: प्रारब्ध, संचित और क्रियमान। प्रारब्ध वह फल है जो हमें इस जन्म में भोगना पड़ता है, संचित वह फल है जो हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों का संचय है, और क्रियमान वह फल है जो हमारे वर्तमान जन्म के कर्मों का तत्काल फल है।
जीवन में सफलता:
गीता में यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने कर्मों के आधार पर अपना जीवन व्यतीत करता है, उसे जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति का भविष्य उसके कर्म के आधार पर ही तय होता है। यदि व्यक्ति के कर्म अच्छे हैं, तो वह नई ऊचाईंयों को छू सकता है, वहीं बुरे कर्म व्यक्ति को बर्बाद करने की भी ताकत रखते हैं。
इन सभी बिंदुओं से स्पष्ट होता है कि भगवद् गीता में कर्म और उसके फल के बारे में विस्तृत और गहन जानकारी दी गई है, जो हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।