लोहड़ी का पर्व 2025 में 13 जनवरी को मनाया जाएगा। यह त्योहार हर साल मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है।
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लोहड़ी का महत्व
लोहड़ी का पर्व मुख्य रूप से फसल की कटाई और समृद्धि का प्रतीक है। यह पर्व पंजाब और हरियाणा में विशेष रूप से मनाया जाता है, और अब यह देश के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय हो गया है। इस दिन किसान भगवान सूर्य और अग्निदेव का आभार प्रकट करते हैं। इस दिन नई फसल का स्वागत किया जाता है और अग्नि में नई फसल के दाने डालकर भगवान से अच्छी फसल की कामना की जाती है।
लोहड़ी की पूजा विधि
शुभ मुहूर्त: लोहड़ी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 04 बजकर 26 मिनट तक होता है। इस दिन भद्रावास और रवियोग बन रहा है, जिसमें अग्निदेव की पूजा विधिवत रूप से की जाती है।
पूजा विधि: लोहड़ी के दिन सबसे पहले अग्नि देव की पूजा की जाती है। अग्नि में गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक आदि डालने के बाद इन्हें अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ बांटा जाता है। तिल के लड्डू भी बांटे जाते हैं।
अन्य रीति-रिवाज: इस दिन लोग संध्या के समय अग्नि के चारों ओर नाचते-गाते हैं। बच्चे घर-घर जाकर लोकगीत गाते हैं और उन्हें मिठाई और पैसे दिए जाते हैं। संगीत और नृत्य के साथ लोहड़ी का जश्न मनाया जाता है। रात को सरसों का साग, मक्के की रोटी, और खीर जैसे सांस्कृतिक भोजन का आनंद लिया जाता है।
लोहड़ी का इतिहास और कथा
लोहड़ी के दिन गाये जाने वाले लोकगीतों में दुल्ला भट्टी के नाम का जिक्र होता है। ऐसा माना जाता है कि पंजाब में मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में दुल्ला भट्टी नाम का लुटेरा रहता था, जो अमीरों से धन लूटकर गरीबों में बांट देता था। दुल्ला भट्टी ने गरीब और अनाथ लड़कियों के विवाह में मदद की और उन्हें अगवा होने से बचाया। इस घटना के बाद से ही पूरे पंजाब में दुल्ला भट्टी को नायक की उपाधि दी गई और लोहड़ी के दिन 'सुंदर मुंदरिए' लोकगीत गाया जाता है।लोहड़ी का पर्व न केवल फसल की कटाई का उत्सव है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी समर्पित है। यह पर्व परिवारों को एक साथ लाता है और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है।